प्लास्टिक का खतरा हर तरफ
- अजय कुमार झा.
1972 से हरेक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस बार पर्यावरण दिवस पर भारत वैश्विक मेजबान है और संकल्प है दुनिया को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करने का। पिछले वर्ष दिसंबर में राष्ट्रसंघ की तीसरी पर्यावरण एसेम्बली में 193 देशों ने विश्व को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करने का संकल्प लिया है।
प्लास्टिक आज हमारे जीवन में अत्यंत उपयोगी वस्तु है और हम हरेक दिन प्लास्टिक का उपयोग कई तरह से करते हैं। सुबह उठते ही टूथब्रश और टूथपेस्ट से लेकर हमारे भोजन की पैकिंग, यातायात साधन, फोन, कंप्यूटर सभी चीजों में प्लास्टिक है। प्लास्टिक के बिना शायद आज जीवन की परिकल्पना असंभव सी लगती है। लेकिन यह प्लास्टिक पर्यावरण के लिए काफी घातक है। प्लास्टिक के पदार्थ नाॅनबायोडिग्रेडेबल हैं और यह डिग्रेड होने में 500 से 1000 वर्ष तक ले सकते हैं।
क्या है प्लास्टिक प्रदूषण
1950 से दुनिया भर में तकरीबन 8.3 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है, जिसमें से सिर्फ 9 प्रतिशत रिसाइकल लिया है और सिर्फ 14 प्रतिशत इनसिनरेटर में जलाया गया है। अर्थात् 1950 से लेकर अभी तक 6.3 बिलियन टन हमारे पर्यावरण में मौजूद है। सारे प्लास्टिक में 60 प्रतिशत ऐसे प्लास्टिक हैं जो सिर्फ एक बार इस्तेमाल के लिए बनाए जाते हैं, जैसे चाय/काॅफी के कम, पानी या अन्य पेय पदार्थ के बोतल और पाॅलीथीन के थैले।
यह प्लास्टिक या तो बड़े लैण्डफिल में हैं या हमारे समुद्रों में। दोनों ही तरह से यह धरती को और समुद्री जीवन को प्रदूषित कर रहे हैं। समुद्र में व्हेल, सील या अन्य जीव प्लास्टिक में फँसकर या उसे खा कर रोज मर रहे हैं। प्लास्टिक टूटकर माइक्रो प्लास्टिक यानी अत्यंत सूक्ष्म कण में परिवर्तित होता है जो मछलियाँ खा लेती हैं और उनके माध्यम से हमारे भोजन चक्र में शामिल हो जाती हैं। समुद्रों और नदियों में प्लास्टिक प्रदूषण यदि इसी गति से चलता रहा तो 2050 तक नदियों और समुद्रों में मछलियों के बजाय प्लास्टिक अधिक मात्रा में पाया जाएगा। उत्तरी व दक्षिणी अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर में वैज्ञानिकों ने ऐसे क्षेत्र चिन्हित किए हैं जहाँ प्लास्टिक प्रदूषण काफी ज्यादा है। उत्तरी व दक्षिणी प्रशांत महासागर में कुछ क्षेत्र सर्वाधिक प्रदूषित हैं। प्लाईमाउथ विश्वविद्यालय के शोध के मुताबिक ब्रिटेन में समुद्र से पकड़ी गई मछलियों में एक तिहाई में प्लास्टिक है। हर वर्ष 10 मिलियन टन प्लास्टिक हमारे समुद्रों में प्रवेश करता है।
सबसे बड़ी समस्या
प्लास्टिक में पाॅलीथीन बैग और पानी व अन्य पेय पदार्थों की बोतलें सबसे बड़ी समस्या है। दुनियाभर में प्रति मिनट दस लाख पेय पदार्थ की बोतलें बेची जाती हैं और प्रतिवर्ष तकरीबन 480 बिलियन प्लास्टिक की बोतलें बेची जाती हैं। इसमें से 110 बिलियन सिर्फ कोका कोला की बोतलें हैं।
कौन-से देश करते हैं सर्वाधिक प्लास्टिक प्रदूषण
चीन, इंडोनेशिया, अमरीका, थाईलैण्ड इत्यादि देश प्लास्टिक के इस्तेमाल और अपशिष्ट पैदा करने में सबसे आगे हैं। इन अपशिष्टों में बड़ा हिस्सा पर्यटकों की देन भी है।
क्या कर रहे हैं देश प्लास्टिक प्रदूषण कम करने के लिए
बांग्लादेश प्लास्टिक की थैलियों को प्रतिबंधित करने वाला पहला देश है। रवांडा 2008 से प्लास्टिक मुक्त देश है। फ्रांस में भी किसी तरह से प्लास्टिक पर प्रतिबंध है। केन्या में प्लास्टिक के उपयोग पर 40,000 डाॅलर का अर्थदंड है। यूरोपीय संघ ने 2016 में 2030 तक सभी प्रकार के प्लास्टिक पैकेजिंग को रिसाइकिल करने और अगले 7 सालों में रिसाइकिल क्षमता को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 55 प्रतिशत करने की नीति बनाई है। ब्रिटेन में 2015 में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर टैक्स लगाकर इस्तेमाल में 85 प्रतिशत की गिरावट लाई है। चीन ने जनवरी 2000 में कानून बनाकर प्लास्टिक अपशिष्ट के आयात को बंद कर दिया है। ज्ञातव्य है कि चीन आयरलैण्ड के 95 प्रतिशत और अन्य यूरोपीय देशों से प्लास्टिक अपशिष्ट का आयात कर उसे रिसाइकिल करता था। चीन द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट का आयात बंद करने पर आयरलैण्ड और अन्य यूरोपीय देशों को अपने प्लास्टिक अपशिष्ट को ठिकाने लगाने का दूसरा तरीका ढूँढना होगा।
देशों के अतिरिक्त कुछ बड़ी कंपनियों ने भी प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने की नीति अपनाई है। कोका कोला ने अपनी 110 बिलियन प्रतिवर्ष बिकने वाली पेय पदार्थों की बोतलों को वापस लेकर रिसाइकिल करने का मन बनाया है। यूनीलीवर और प्राॅक्टर एण्ड गैम्बल कंपनियों (ब्यूटी प्राॅडक्ट्स/ काॅस्मेटिक बनाने वाली कंपनियाँ) ने अपने उत्पाद में अधिक से अधिक रिसाइकिल की हुई प्लास्टिक उपयोग करने का निश्चय किया है। एडीडास ने समुद्री प्लास्टिक से जूता बनाना शुरू किया है। इसके अतिरिक्त कुछ परिधान बनाने वाली कंपनियों ने भी लोगों को जागरूक करने के लिए प्लास्टिक मिश्रित परिधान बनाने का निर्णय लिया है।
भारत में प्लास्टिक प्रदूषण
साइंस जरनल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार भारत समुद्रों में सर्वाधिक प्रदूषण करने वाले 20 देशों में 12वें स्थान पर है। इन देशों में चीन, दक्षिण-पूर्व एशियाई देश, श्रीलंका, मिस्र, नाईजीरिया, बांग्लादेश व दक्षिण अफ्रीका भारत से भी ऊपर हैं। यह 20 देश समुद्रों में जाने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट में 83 प्रतिशत का योगदान करते हैं।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (2015) के अनुसार भारतीय शहरों में प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है, जिसमें सिर्फ 9000 टन एकत्रित करके रिसाइकिल किया जाता है। बाकी 6000 टन हमारे मिट्टी, नालों, शहरों, नदियों, सड़कों, लैण्डफिल और समुद्रों में जाता है। भारत में प्रतिवर्ष 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट का निर्माण होता है।
क्या हैं प्लास्टिक इस्तेमाल के निषेध के प्रयास
भारत सरकार ने 2016 में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स लाकर प्लास्टिक के निर्माण, बिक्री, वितरण और 50 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर निषेध लगाया है। इसके अलावा 20 से अधिक राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में पाॅलीथीन बैग के अलावा अन्य प्लास्टिक के सामान जैसे कप, प्लेट, चम्मच, ग्लास इत्यादि के निर्माण व इस्तेमाल पर निषेध लगाया है। पाँच राज्यों में यह निषेध आंशिक है। जम्मू-कश्मीर व महाराष्ट्र इस वर्ष जनवरी और मार्च में यह निषेध लाने वाले राज्य हैं।
इन निषेध के बावजूद तकरीबन हरेक राज्य में प्लास्टिक और पाॅलीथीन बैग का इस्तेमाल बदस्तूर जारी है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (2015) के अनुसार किसी भी राज्य में निषेध का पालन नहीं हो रहा है। नतीजा यह है कि हमारे शहर प्लास्टिक के कचरे से भरते और प्रदूषित होते जा रहे हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय जरनल इनवायरमेंट साइंस एंड टेक्नोलाॅजी के मुताबिक समुद्रों में सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा डालने वाली 20 नदियों में तीन सिंधु, ब्रह्मपुत्र और गंगा भारत की नदियाँ हैं।
भारत में शायद सभी राज्यों में सभी तरह के प्लास्टिक के उपयोग पर निषेध लगाने से ही समस्या हल होगी। प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध से कुछ रोजगार और समूहों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसका ध्यान सरकार को रखना होगा।
प्लास्टिक प्रदूषण पर इतना जोर क्यों
प्लास्टिक पूरे ठोस अपशिष्ट का 10 प्रतिशत ही है। यह समुद्री जीवों के लिए खतरा है लेकिन मानव जीवन को बहुत हद तक प्रभावित नहीं करता है। हालांकि नदियों में, समुद्रों में, पहाड़ों पर प्लास्टिक आंखों को खटकता है और जिस तरह की साफ, सुंदर दुनिया का सपना आजकल के राष्ट्रनेता दिखाते हैं उसमें आंख की किरकिरी की तरह लगता है। प्लास्टिक की तुलना में वायु प्रदूषण से हर वर्ष दुनिया में 70 से 90 लाख लोग मरते हैं, लेकिन सरकारें इस पर ध्यान देना शायद उतना आवश्यक नहीं समझती हैं।
स्टेण्डर्ड एण्ड पुअर के अनुसार प्लास्टिक अपशिष्ट से मछलियों, जैव विविधता और पर्यटन पर तकरीबन 139 डाॅलर सालाना का घाटा होता है। इसके मुकाबले अगर देखें तो बड़े-बड़े जहाजों और मछली पकड़ने के उद्योगों द्वारा अत्यधिक मछली पकड़ने और खादों के अधिक इस्तेमाल से समुद्रों में खाद बढ़ने से आर्थिक क्षति 200 बिलियन से 500 बिलियन तक आंकी जाती है। इसके अलावा ऐसा अनुमान है कि समुद्रों में कार्बन डायआॅक्साइड घुलने से हुए उनके अम्लीकरण से दुनिया को 1.2 ट्रिलियन डाॅलर प्रतिवर्ष का घाटा हो सकता है। ऐसे परिस्थिति में शायद यह सोचने की जरूरत है कि दुनिया भर की सरकारें इन बड़ी समस्याओं को छोड़कर प्लास्टिक प्रदूषण दूर करने में क्यों लगी है। शायद यह एक आसान लक्ष्य है और सरकारें जनता को साफ, सुंदर दुनिया का सपना बेचने में ज्यादा रुचि रखती हैं। अन्य समस्याओं का निवारण शायद ज्यादा कठिन है और बड़ी कंपनियों का सरकार पर शायद ज्यादा दबाव, सरकारों को जलवायु परिवर्तन या वायु और जल प्रदूषण को दूर करने से रोक रहा है।
क्या हैं प्लास्टिक के विकल्प और समाधान
प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान मुश्किल है परंतु असंभव नहीं है। बहुत संस्थाओं और कंपनियों का मानना है कि प्लास्टिक के थैले की जगह खरीद-फरोख्त में कपड़े के थेले का इस्तेमाल करें। हालांकि यह ध्यान रखना होगा कि दुनिया में 3 प्रतिशत से कम खेती योग्य जमीन का इस्तेमाल कपास उपजाने में होता है लेकिन दुनिया में इस्तेमाल होने वाले एक चैथाई कीटनाशक और 11 प्रतिशत खाद का इस्तेमाल सिर्फ 3 प्रतिशत खेती योग्य भूमि पर कपास पैदा करने में लगता है। इसके अतिरिक्त एक किलो कपास पैदा करने में तकरीबन 5000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। कल्पना करें कि दुनिया के सभी बड़े सुपरमार्केट यदि प्लास्टिक की जगह कपड़े के बैग देने लगें तो एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी। ब्रिटेन की सरकार के एक विश्लेषण के अनुसार कपड़े के बैग बनाने और उसके यातायात में लगे उत्सर्जन के अनुसार एक कपड़े का बैग तकरीबन 200 बार इस्तेमाल किया जाए तभी वह प्लास्टिक के बैग की अपेक्षा कम उत्सर्जन वाला होगा।
प्लास्टिक को कागज के बैग से बदलने में भी कई चीजों का ध्यान रखना होगा। हालांकि कागज से यह फायदा है कि वह बायोडिग्रेडेबल है, लेकिन कागज प्लासिटक से ज्यादा स्थान घेरता है और उसके यातायात में प्लास्टिक से कई गुना ज्यादा ईंधन लगता है। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना होगा कि कागज जंगलों को काटकर तो नहीं बनाया जा रहा है। रिसाइकिल किए हुए कागज से बैग बनाने में कार्बन फुटप्रिंट थोड़ा कम होगा। इन वजहों से कई देश प्लास्टिक व कागज के थैलों पर बराबर अर्थदंड या निषेध लगाते हैं।
तो फिर क्या है समाधान
कम से कम प्लास्टिक का इस्तेमाल करें। बार-बार इस्तेमाल की जाने वाली पानी की बोतल रखें। बहुत ज्यादा पैकेजिंग वाले सामान (कपड़े, फल, खिलौने, भोजन के सामान) इत्यादि न खरीदें। खरीदारी करने के लिए हमेशा अपना बैग या थैला साथ रखें। प्लास्टिक के कप, प्लेट, चम्मच, ग्लास, स्ट्राॅ इत्यादि का कम इस्तेमाल करें। बाहर रेस्तरां में खाने के बजाय घर पर खाना बनाएं, इससे आप कम प्लास्टिक अपशिष्ट पैदा करेंगे। महिलाएं सौंदर्य प्रसाधन का सामान कम से कम खरीदें, क्योंकि प्लास्टिक अपशिष्ट में सौंदर्य प्रसाधन से आए हुए प्लास्टिक की मात्रा बहुत अधिक है। इसके अतिरिक्त अपने राज्य/क्षेत्र/शहर में अपशिष्ट के पृथकीकरण वाले कानून बनाने और उसके अनुपालन पर जोर दें। पर्यटन में जाने पर भी कम से कम प्लास्टिक का प्रयोग करें और अपने अपशिष्ट की जिम्मेदारी लें।
1972 से हरेक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस बार पर्यावरण दिवस पर भारत वैश्विक मेजबान है और संकल्प है दुनिया को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करने का। पिछले वर्ष दिसंबर में राष्ट्रसंघ की तीसरी पर्यावरण एसेम्बली में 193 देशों ने विश्व को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करने का संकल्प लिया है।
प्लास्टिक आज हमारे जीवन में अत्यंत उपयोगी वस्तु है और हम हरेक दिन प्लास्टिक का उपयोग कई तरह से करते हैं। सुबह उठते ही टूथब्रश और टूथपेस्ट से लेकर हमारे भोजन की पैकिंग, यातायात साधन, फोन, कंप्यूटर सभी चीजों में प्लास्टिक है। प्लास्टिक के बिना शायद आज जीवन की परिकल्पना असंभव सी लगती है। लेकिन यह प्लास्टिक पर्यावरण के लिए काफी घातक है। प्लास्टिक के पदार्थ नाॅनबायोडिग्रेडेबल हैं और यह डिग्रेड होने में 500 से 1000 वर्ष तक ले सकते हैं।
क्या है प्लास्टिक प्रदूषण
1950 से दुनिया भर में तकरीबन 8.3 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है, जिसमें से सिर्फ 9 प्रतिशत रिसाइकल लिया है और सिर्फ 14 प्रतिशत इनसिनरेटर में जलाया गया है। अर्थात् 1950 से लेकर अभी तक 6.3 बिलियन टन हमारे पर्यावरण में मौजूद है। सारे प्लास्टिक में 60 प्रतिशत ऐसे प्लास्टिक हैं जो सिर्फ एक बार इस्तेमाल के लिए बनाए जाते हैं, जैसे चाय/काॅफी के कम, पानी या अन्य पेय पदार्थ के बोतल और पाॅलीथीन के थैले।
यह प्लास्टिक या तो बड़े लैण्डफिल में हैं या हमारे समुद्रों में। दोनों ही तरह से यह धरती को और समुद्री जीवन को प्रदूषित कर रहे हैं। समुद्र में व्हेल, सील या अन्य जीव प्लास्टिक में फँसकर या उसे खा कर रोज मर रहे हैं। प्लास्टिक टूटकर माइक्रो प्लास्टिक यानी अत्यंत सूक्ष्म कण में परिवर्तित होता है जो मछलियाँ खा लेती हैं और उनके माध्यम से हमारे भोजन चक्र में शामिल हो जाती हैं। समुद्रों और नदियों में प्लास्टिक प्रदूषण यदि इसी गति से चलता रहा तो 2050 तक नदियों और समुद्रों में मछलियों के बजाय प्लास्टिक अधिक मात्रा में पाया जाएगा। उत्तरी व दक्षिणी अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर में वैज्ञानिकों ने ऐसे क्षेत्र चिन्हित किए हैं जहाँ प्लास्टिक प्रदूषण काफी ज्यादा है। उत्तरी व दक्षिणी प्रशांत महासागर में कुछ क्षेत्र सर्वाधिक प्रदूषित हैं। प्लाईमाउथ विश्वविद्यालय के शोध के मुताबिक ब्रिटेन में समुद्र से पकड़ी गई मछलियों में एक तिहाई में प्लास्टिक है। हर वर्ष 10 मिलियन टन प्लास्टिक हमारे समुद्रों में प्रवेश करता है।
सबसे बड़ी समस्या
प्लास्टिक में पाॅलीथीन बैग और पानी व अन्य पेय पदार्थों की बोतलें सबसे बड़ी समस्या है। दुनियाभर में प्रति मिनट दस लाख पेय पदार्थ की बोतलें बेची जाती हैं और प्रतिवर्ष तकरीबन 480 बिलियन प्लास्टिक की बोतलें बेची जाती हैं। इसमें से 110 बिलियन सिर्फ कोका कोला की बोतलें हैं।
कौन-से देश करते हैं सर्वाधिक प्लास्टिक प्रदूषण
चीन, इंडोनेशिया, अमरीका, थाईलैण्ड इत्यादि देश प्लास्टिक के इस्तेमाल और अपशिष्ट पैदा करने में सबसे आगे हैं। इन अपशिष्टों में बड़ा हिस्सा पर्यटकों की देन भी है।
प्लास्टिक की पानी की बोतलें (बिलियन गैलन में)
1. चीन 10.04
2. अमरीका 10.13
3. मैक्सिको 8.23
4. इंडोनेशिया 4.80
5. ब्राजील 4.80
6. थाईलैण्ड 3.99
7. इटली 3.17
8. जर्मनी 3.11
9. फ्रांस 2.41
10. भारत 1.04
किन देशों से कितना प्लास्टिक जाता है समुद्र में (मिलियन टन में)
1. चीन 8.8
2. इंडोनेशिया 3.2
3. फिलीपींस 1.9
4. वियतनाम 1.8
5. श्रीलंका 1.6
6. मिस्र 1.0
7. थाईलैण्ड 1.0
8. मलेशिया 0.9
9. नाईजीरिया 0.9
10. बांग्लादेश 0.8
क्या कर रहे हैं देश प्लास्टिक प्रदूषण कम करने के लिए
बांग्लादेश प्लास्टिक की थैलियों को प्रतिबंधित करने वाला पहला देश है। रवांडा 2008 से प्लास्टिक मुक्त देश है। फ्रांस में भी किसी तरह से प्लास्टिक पर प्रतिबंध है। केन्या में प्लास्टिक के उपयोग पर 40,000 डाॅलर का अर्थदंड है। यूरोपीय संघ ने 2016 में 2030 तक सभी प्रकार के प्लास्टिक पैकेजिंग को रिसाइकिल करने और अगले 7 सालों में रिसाइकिल क्षमता को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 55 प्रतिशत करने की नीति बनाई है। ब्रिटेन में 2015 में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर टैक्स लगाकर इस्तेमाल में 85 प्रतिशत की गिरावट लाई है। चीन ने जनवरी 2000 में कानून बनाकर प्लास्टिक अपशिष्ट के आयात को बंद कर दिया है। ज्ञातव्य है कि चीन आयरलैण्ड के 95 प्रतिशत और अन्य यूरोपीय देशों से प्लास्टिक अपशिष्ट का आयात कर उसे रिसाइकिल करता था। चीन द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट का आयात बंद करने पर आयरलैण्ड और अन्य यूरोपीय देशों को अपने प्लास्टिक अपशिष्ट को ठिकाने लगाने का दूसरा तरीका ढूँढना होगा।
देशों के अतिरिक्त कुछ बड़ी कंपनियों ने भी प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने की नीति अपनाई है। कोका कोला ने अपनी 110 बिलियन प्रतिवर्ष बिकने वाली पेय पदार्थों की बोतलों को वापस लेकर रिसाइकिल करने का मन बनाया है। यूनीलीवर और प्राॅक्टर एण्ड गैम्बल कंपनियों (ब्यूटी प्राॅडक्ट्स/ काॅस्मेटिक बनाने वाली कंपनियाँ) ने अपने उत्पाद में अधिक से अधिक रिसाइकिल की हुई प्लास्टिक उपयोग करने का निश्चय किया है। एडीडास ने समुद्री प्लास्टिक से जूता बनाना शुरू किया है। इसके अतिरिक्त कुछ परिधान बनाने वाली कंपनियों ने भी लोगों को जागरूक करने के लिए प्लास्टिक मिश्रित परिधान बनाने का निर्णय लिया है।
भारत में प्लास्टिक प्रदूषण
साइंस जरनल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार भारत समुद्रों में सर्वाधिक प्रदूषण करने वाले 20 देशों में 12वें स्थान पर है। इन देशों में चीन, दक्षिण-पूर्व एशियाई देश, श्रीलंका, मिस्र, नाईजीरिया, बांग्लादेश व दक्षिण अफ्रीका भारत से भी ऊपर हैं। यह 20 देश समुद्रों में जाने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट में 83 प्रतिशत का योगदान करते हैं।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (2015) के अनुसार भारतीय शहरों में प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है, जिसमें सिर्फ 9000 टन एकत्रित करके रिसाइकिल किया जाता है। बाकी 6000 टन हमारे मिट्टी, नालों, शहरों, नदियों, सड़कों, लैण्डफिल और समुद्रों में जाता है। भारत में प्रतिवर्ष 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट का निर्माण होता है।
क्या हैं प्लास्टिक इस्तेमाल के निषेध के प्रयास
भारत सरकार ने 2016 में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स लाकर प्लास्टिक के निर्माण, बिक्री, वितरण और 50 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर निषेध लगाया है। इसके अलावा 20 से अधिक राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में पाॅलीथीन बैग के अलावा अन्य प्लास्टिक के सामान जैसे कप, प्लेट, चम्मच, ग्लास इत्यादि के निर्माण व इस्तेमाल पर निषेध लगाया है। पाँच राज्यों में यह निषेध आंशिक है। जम्मू-कश्मीर व महाराष्ट्र इस वर्ष जनवरी और मार्च में यह निषेध लाने वाले राज्य हैं।
इन निषेध के बावजूद तकरीबन हरेक राज्य में प्लास्टिक और पाॅलीथीन बैग का इस्तेमाल बदस्तूर जारी है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (2015) के अनुसार किसी भी राज्य में निषेध का पालन नहीं हो रहा है। नतीजा यह है कि हमारे शहर प्लास्टिक के कचरे से भरते और प्रदूषित होते जा रहे हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय जरनल इनवायरमेंट साइंस एंड टेक्नोलाॅजी के मुताबिक समुद्रों में सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा डालने वाली 20 नदियों में तीन सिंधु, ब्रह्मपुत्र और गंगा भारत की नदियाँ हैं।
भारत में शायद सभी राज्यों में सभी तरह के प्लास्टिक के उपयोग पर निषेध लगाने से ही समस्या हल होगी। प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध से कुछ रोजगार और समूहों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसका ध्यान सरकार को रखना होगा।
प्लास्टिक प्रदूषण पर इतना जोर क्यों
प्लास्टिक पूरे ठोस अपशिष्ट का 10 प्रतिशत ही है। यह समुद्री जीवों के लिए खतरा है लेकिन मानव जीवन को बहुत हद तक प्रभावित नहीं करता है। हालांकि नदियों में, समुद्रों में, पहाड़ों पर प्लास्टिक आंखों को खटकता है और जिस तरह की साफ, सुंदर दुनिया का सपना आजकल के राष्ट्रनेता दिखाते हैं उसमें आंख की किरकिरी की तरह लगता है। प्लास्टिक की तुलना में वायु प्रदूषण से हर वर्ष दुनिया में 70 से 90 लाख लोग मरते हैं, लेकिन सरकारें इस पर ध्यान देना शायद उतना आवश्यक नहीं समझती हैं।
स्टेण्डर्ड एण्ड पुअर के अनुसार प्लास्टिक अपशिष्ट से मछलियों, जैव विविधता और पर्यटन पर तकरीबन 139 डाॅलर सालाना का घाटा होता है। इसके मुकाबले अगर देखें तो बड़े-बड़े जहाजों और मछली पकड़ने के उद्योगों द्वारा अत्यधिक मछली पकड़ने और खादों के अधिक इस्तेमाल से समुद्रों में खाद बढ़ने से आर्थिक क्षति 200 बिलियन से 500 बिलियन तक आंकी जाती है। इसके अलावा ऐसा अनुमान है कि समुद्रों में कार्बन डायआॅक्साइड घुलने से हुए उनके अम्लीकरण से दुनिया को 1.2 ट्रिलियन डाॅलर प्रतिवर्ष का घाटा हो सकता है। ऐसे परिस्थिति में शायद यह सोचने की जरूरत है कि दुनिया भर की सरकारें इन बड़ी समस्याओं को छोड़कर प्लास्टिक प्रदूषण दूर करने में क्यों लगी है। शायद यह एक आसान लक्ष्य है और सरकारें जनता को साफ, सुंदर दुनिया का सपना बेचने में ज्यादा रुचि रखती हैं। अन्य समस्याओं का निवारण शायद ज्यादा कठिन है और बड़ी कंपनियों का सरकार पर शायद ज्यादा दबाव, सरकारों को जलवायु परिवर्तन या वायु और जल प्रदूषण को दूर करने से रोक रहा है।
क्या हैं प्लास्टिक के विकल्प और समाधान
प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान मुश्किल है परंतु असंभव नहीं है। बहुत संस्थाओं और कंपनियों का मानना है कि प्लास्टिक के थैले की जगह खरीद-फरोख्त में कपड़े के थेले का इस्तेमाल करें। हालांकि यह ध्यान रखना होगा कि दुनिया में 3 प्रतिशत से कम खेती योग्य जमीन का इस्तेमाल कपास उपजाने में होता है लेकिन दुनिया में इस्तेमाल होने वाले एक चैथाई कीटनाशक और 11 प्रतिशत खाद का इस्तेमाल सिर्फ 3 प्रतिशत खेती योग्य भूमि पर कपास पैदा करने में लगता है। इसके अतिरिक्त एक किलो कपास पैदा करने में तकरीबन 5000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। कल्पना करें कि दुनिया के सभी बड़े सुपरमार्केट यदि प्लास्टिक की जगह कपड़े के बैग देने लगें तो एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी। ब्रिटेन की सरकार के एक विश्लेषण के अनुसार कपड़े के बैग बनाने और उसके यातायात में लगे उत्सर्जन के अनुसार एक कपड़े का बैग तकरीबन 200 बार इस्तेमाल किया जाए तभी वह प्लास्टिक के बैग की अपेक्षा कम उत्सर्जन वाला होगा।
प्लास्टिक को कागज के बैग से बदलने में भी कई चीजों का ध्यान रखना होगा। हालांकि कागज से यह फायदा है कि वह बायोडिग्रेडेबल है, लेकिन कागज प्लासिटक से ज्यादा स्थान घेरता है और उसके यातायात में प्लास्टिक से कई गुना ज्यादा ईंधन लगता है। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना होगा कि कागज जंगलों को काटकर तो नहीं बनाया जा रहा है। रिसाइकिल किए हुए कागज से बैग बनाने में कार्बन फुटप्रिंट थोड़ा कम होगा। इन वजहों से कई देश प्लास्टिक व कागज के थैलों पर बराबर अर्थदंड या निषेध लगाते हैं।
तो फिर क्या है समाधान
कम से कम प्लास्टिक का इस्तेमाल करें। बार-बार इस्तेमाल की जाने वाली पानी की बोतल रखें। बहुत ज्यादा पैकेजिंग वाले सामान (कपड़े, फल, खिलौने, भोजन के सामान) इत्यादि न खरीदें। खरीदारी करने के लिए हमेशा अपना बैग या थैला साथ रखें। प्लास्टिक के कप, प्लेट, चम्मच, ग्लास, स्ट्राॅ इत्यादि का कम इस्तेमाल करें। बाहर रेस्तरां में खाने के बजाय घर पर खाना बनाएं, इससे आप कम प्लास्टिक अपशिष्ट पैदा करेंगे। महिलाएं सौंदर्य प्रसाधन का सामान कम से कम खरीदें, क्योंकि प्लास्टिक अपशिष्ट में सौंदर्य प्रसाधन से आए हुए प्लास्टिक की मात्रा बहुत अधिक है। इसके अतिरिक्त अपने राज्य/क्षेत्र/शहर में अपशिष्ट के पृथकीकरण वाले कानून बनाने और उसके अनुपालन पर जोर दें। पर्यटन में जाने पर भी कम से कम प्लास्टिक का प्रयोग करें और अपने अपशिष्ट की जिम्मेदारी लें।